हिंदू धर्म में मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या दी गई है। महर्षि वेदव्यास के मतानुसार मनुष्य जब जन्म लेता है तभी से इन संस्कारों का आरंभ हो जाता है और मृत्यु तक पवित्र सोलह संस्कार संपन्न किए जाते हैं। ये 16 संस्कार हैं गर्भाधान, पुंसवन, सीमंतोन्नायन, जातक्रम, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारंभ, केशांत, समावर्तन, विवाह, आवसश्याधाम। प्रत्येक संस्कार का अपना-अपना महत्व है।
विवाह संस्कार का केवल वही युवक-युवतियां निर्वाह कर सकते हैं जो शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होते हैं। भारतीय संस्कृति में विवाह को न केवल शारीरिक अथवा सामाजिक संबंध माना जाता है बल्कि आध्यात्मिक साधना का भी रूप माना गया है।
आप भी विवाह के बंधन में बंधने वाले हैं तो शादी के दिन से लेकर प्रथम वर्षगांठ तक कुछ ऐसे काम हैं जो भूलकर भी नहीं करने चाहिए। ऐसा करने से आपका सारा जीवन प्रेम, सुख, वैभव व शांति से व्यतित होगा।
* हनीमून मनाने के लिए कभी भी किसी तीर्थस्थल का चयन न करें।
* भगवान शिव से संबंधित किसी भी तीर्थस्थल पर एक वर्ष तक न जाएं। शास्त्र कहते हैं भोले बाबा वैरागी और मतंग देवता हैं। यदि नवविवाहित शिव मंदिर जाते हैं और इस दौरान उन्हें माता-पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है। ऐसे में उनकी होने वाली संतान वैरागी और दुनियादारी से विमुख हो सकती है। पुरूष शिव मंदिर जाकर शिवलिंग के दर्शन, पूजन और अभिषेक कर सकते हैं। महिलाओं को ऐसा नहीं करना चाहिए।
* महिलाओं को देवी पार्वती का पूजन करना चाहिए। इस दौरन उनके प्रिय मंत्रों का भी जाप करना चाहिए। देवी पार्वती को प्रसन्न करने का मंत्र ऊँ उमामहेश्वराभ्यां नमः, ऊँ गौरये नमः
* शिवलिंग का दर्शन दंपत्ति एकसाथ करते हैं तो शादी की पहली वर्षगांठ तक संतान प्राप्ति का विचार न करें।
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