आयुर्वेद में मुनियों ने गर्भाधान से सम्बंधित विषयों के संबंध में बहुत विस्तार से बताया है। इसमें बताए गए कुछ आयुर्वेदिक नियमों का पालन अगर कोई पति-पत्नी करे तो मान्यता है कि पैदा होने वाली संतान सर्वगुणसम्पन्न होती है-:
एक महीने तक ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले पुरुष को उड़द की दाल से बनाई गई खिचड़ी के साथ दूध खाने का निर्देश है, साथ ही मासिक स्राव रुकने से अंतिम दिन (ऋतुकाल) के बाद जोड़े वाले दिनों में जैसे छठी, आठवीं एवं दसवीं रात को यौन सम्बन्ध बनाने का निर्देश है,लेकिन ऐसा नहीं है कि अयुग्म दिनों में यानी पांचवीं, सातवीं एवं नौवीं रात्रि को यौन सम्बन्ध बनाने से संतान की प्राप्ति नहीं होगी। Ayurvedastreet
ऋतुकाल के बाद की 4 रात की अपेक्षा,6 रात एवं 6 की अपेक्षा आठवी रात को यौन सम्बन्ध बनाना संतान प्राप्ति की दृष्टीकोण से अच्छा माना गया है।
ऋतुकाल के 16 से 30 दिन यौन सम्बन्ध बनाना संतान प्राप्ति के लिए अच्छा नहीं माना गया है
आयुर्वेद मतानुसार ऋतुकाल के सामान्य 4 दिनों में से पहले दिन स्त्री से यौन सम्बन्ध बनाना आयु को नष्ट करनेवाला बताया गया है और 4 दिन के बाद यौन सम्बन्ध बनाना संतानोत्पत्ति क़ी दृष्टी से उत्तम माना गया है अर्थात मासिक स्राव के दिनों को छोड़कर ही यौन सम्बन्ध बनाने का निर्देश दिया गया है।
उत्तम संतान के लिए लक्ष्मणा, वट के नए कोपल, सहदेवा एवं विश्वदेवा में से किसी एक को दूध के साथ पीस कर स्त्री के दाहिने और पुरुष को नाक के बाएं छिद्र में डालना चाहिए।
शराब के सेवन से आपके होने वाले बच्चे के वजन पर, सीखने समझने की काबलियत पर, आँखों पर, अंगों पर, स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।कैफीन का सेवन गर्भवती महिला में गर्भपात और बच्चे के असामयिक जन्म का खतरा बढ़ा सकता है। गर्भावस्था के दौरान पारा युक्त मछली के सेवन से बचना चाहिए।
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बैंगन, मिर्ची, प्याज, लहसुन, हिंग, बाजरा, गुड़ का सेवन कम से कम मात्रा में करना चाहिए, खासकर के उनको जिनका किसी न किसी कारण से पहले गर्भपात हो चुका है। मसालेदार मांस का सेवन करने से भी बचना चाहिए, क्योंकि उसमे हानिकारक जीवाणुओं का समावेश हो सकता है। इस प्रकार गर्भधारण संस्कार में बताए गए नियमों से उत्पन्न संतान बलवान, ओजस्वी, आरोग्ययुक्त एवं दीर्घायु होती है।
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